छंद (chhand) हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो कविता और काव्य रचनाओं की लय और संरचना निर्धारित करता है। अगर आप छंद की बारीकियों को समझना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा। इसमें हम छंद(chhand) के विभिन्न प्रकार, उनके प्रमुख अंग, और उदाहरणों के साथ विस्तार से चर्चा करेंगे। साथ ही यह भी जानेंगे कि छंद कैसे पहचाने जाते हैं और किस तरह की रचनाओं में इनका उपयोग होता है।
1. छंद (chhand) क्या होता है
छंद का अर्थ है कविता या पद्य की वह संरचना, जिसमें वर्ण, मात्रा, यति, और लय का एक विशेष अनुशासन होता है। यह काव्य की वह विधा है, जो कविता में सौंदर्य और संगीतात्मकता का अनुभव कराती है। सरल शब्दों में, छंद वह काव्यिक ढांचा है, जिसमें कविता की पंक्तियों की संख्या, प्रत्येक पंक्ति में वर्णों या मात्राओं की गणना, और ठहराव के नियम होते हैं।
छंद का उपयोग प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक हिंदी और संस्कृत साहित्य में व्यापक रूप से होता आया है। यह कवि की कल्पनाओं को एक संगठित और सुनियोजित रूप देता है, जिससे पाठक कविता को सहजता से समझ सकें और उसकी लय का आनंद ले सकें।
2. छंद के प्रकार
हिंदी काव्यशास्त्र में छंदों को वर्ण, मात्रा, और लय के आधार पर कई प्रकारों में विभाजित किया गया है। छंद की यह विविधता कविता में लय, गति और तुकबंदी का सौंदर्य प्रदान करती है। मुख्य रूप से छंद दो प्रकार के होते हैं: वर्णिक छंद और मात्रिक छंद।
- वर्णिक छंद :जिनमें प्रत्येक पंक्ति में वर्णों की संख्या निश्चित होती है। इन छंदों में लय और गति वर्णों के आधार पर बनती है।
- मात्रिक छंद :जिनमें प्रत्येक पंक्ति में मात्राओं की संख्या निश्चित होती है। लघु (⏑) और गुरु (−) ध्वनियों का संयोजन मात्रा बनाता है।
3. छंद के प्रमुख अंग
किसी भी छंद की पहचान और उसकी सही रचना के लिए उसके प्रमुख अंगों को समझना आवश्यक है। छंद की सुंदरता और उसकी लय इन्हीं अंगों पर आधारित होती है। ये अंग किसी भी छंद की संरचना, लय, और गति को निर्धारित करते हैं।
छंद के मुख्य चार अंग होते हैं: वर्ण, मात्रा, यति, और गति। इनके आधार पर छंद का प्रकार और उसका रूप निर्धारित होता है। आइए इन अंगों को विस्तार से समझते हैं:
1. वर्ण
- वर्ण किसी भी छंद की सबसे छोटी इकाई होती है। यह कविता की एक पंक्ति (चरण) में आने वाले अक्षरों की संख्या को दर्शाता है। वर्ण के आधार पर छंदों को वर्णिक छंद कहा जाता है।
- प्रत्येक वर्ण या तो लघु (⏑) या गुरु (−) हो सकता है।
- लघु वर्ण (⏑): छोटे ध्वनि वाले वर्ण, जैसे कि ‘क’, ‘त’, ‘र’।
- गुरु वर्ण (−): बड़े ध्वनि वाले वर्ण, जैसे ‘का’, ‘ता’, ‘रा’।
उदाहरण:
चौपाई छंद में प्रत्येक पंक्ति में 16 वर्ण होते हैं।
2. मात्रा
- मात्रा छंद के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण होती है। यह वर्णों की ध्वनि की लंबाई या छोटे-बड़ेपन को मापने का पैमाना है। प्रत्येक वर्ण एक निश्चित मात्रा धारण करता है।
- लघु वर्ण (⏑): 1 मात्रा का होता है।
- गुरु वर्ण (−): 2 मात्राओं का होता है।
मात्रिक छंद में प्रत्येक पंक्ति में मात्राओं की संख्या निर्धारित होती है।
उदाहरण:
दोहा छंद में पहली पंक्ति में 13 मात्राएँ और दूसरी पंक्ति में 11 मात्राएँ होती हैं।
3. यति (विराम)
- यति का अर्थ है विराम या ठहराव। यह वह स्थान होता है, जहाँ कविता के प्रवाह में एक छोटा रुकाव आता है, जिससे पाठक को एक विराम का अनुभव होता है।
- यति छंद की लय को नियंत्रित करती है और कविता को सुव्यवस्थित और मधुर बनाती है।
- यति का स्थान हर छंद में अलग-अलग होता है।
- उदाहरण:
दोहा में पहली पंक्ति में 13वीं मात्रा पर यति होती है।
“करत-करत अभ्यास के (यति), जड़मति होत सुजान।”
4. गति
- गति छंद की लय और ताल को दर्शाती है। यह इस बात पर निर्भर करती है कि कविता की पंक्तियाँ किस प्रकार से पढ़ी जाती हैं।
- गति का संबंध कविता के छंद में वर्णों और मात्राओं के संयोजन से होता है, जिससे कविता में लयबद्धता आती है।
- गति से छंद की संगीतात्मकता और पाठक के मन में लयबद्ध प्रवाह का अनुभव होता है।
उदाहरण:
दोहा छंद की गति में 13-11 मात्राओं का संयोजन होता है, जिससे कविता की लय बनी रहती है।
5. तुकांत (कभी-कभी)
- तुकांत वह स्थान है, जहाँ छंद के अंत में एक निश्चित लय और ध्वनि समानता होती है। तुकांत छंद में शब्दों की ध्वनि एक जैसी होती है, जिससे कविता में लय और मिठास आती है।
- हर छंद में तुकांत जरूरी नहीं होता, लेकिन जहाँ यह होता है, वहाँ यह छंद की खूबसूरती को बढ़ाता है।
- उदाहरण:
“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥”
4. छंद के उदाहरण
1.दोहा(doha chhand)
दोहा हिंदी साहित्य का एक प्रसिद्ध और प्राचीन छंद है, जिसका उपयोग काव्य रचनाओं में होता है। दोहा एक मात्रिक छंद है, जिसमें दो पंक्तियाँ (चरण) होती हैं। प्रत्येक पंक्ति की मात्रा संख्या 24 होती है, दोहा हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण और लोकप्रिय छंद है, जो अपने संक्षिप्त, सटीक, और गहरे अर्थों के लिए जाना जाता है। इसकी सरल संरचना और गूढ़ अर्थों के कारण यह प्राचीन काल से लेकर आज तक कवियों और लेखकों के बीच लोकप्रिय है।
दोहा की संरचना:
- प्रथम चरण: इसमें 13 मात्राएँ होती हैं।
- द्वितीय चरण: इसमें 11 मात्राएँ होती हैं।
- यति: दोहा के पहले चरण में 13वीं मात्रा पर यति (विराम) होती है, जबकि दूसरे चरण में 11वीं मात्रा तक पंक्ति पूरी होती है।
दोहा का उदाहरण:
- संत कबीर का दोहा:
- “बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
- पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥”
- रहीम का दोहा:
- “रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
- टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाए॥”
दोहा की विशेषताएँ:
- सरल और प्रभावशाली: दोहे की भाषा सरल होती है, लेकिन इसका संदेश गहरा और विचारोत्तेजक होता है।
- तुकबंदी नहीं जरूरी: दोहे में तुकांत (राइमिंग) जरूरी नहीं है, इसका मुख्य उद्देश्य विचार और भावों को व्यक्त करना होता है।
- संतुलित मात्रा संरचना: 13-11 मात्रा की विशेष संरचना इसे अन्य छंदों से अलग और अद्वितीय बनाती है।
2.चौपाई(chaupai chhand)
चौपाई हिंदी और संस्कृत काव्यशास्त्र का एक प्रमुख छंद है, जिसका प्रयोग विशेष रूप से धार्मिक और महाकाव्य रचनाओं में होता है। यह वर्णिक छंद है, जिसमें प्रत्येक पंक्ति (चरण) में 16 वर्ण होते हैं। चौपाई छंद की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें चार पंक्तियाँ (चरण) होती हैं, और इसमें तुकांत (राइमिंग) जरूरी नहीं होती।
चौपाई की संरचना:
- प्रत्येक पंक्ति में 16 वर्ण होते हैं।
- एक चौपाई में आम तौर पर चार चरण होते हैं।
- यति (विराम) का कोई निश्चित नियम नहीं होता, लेकिन आमतौर पर चौपाई में प्रवाह और लय होती है।
चौपाई का उदाहरण:
- तुलसीदास की रामचरितमानस से चौपाई:
- “राम नाम मनि दीप धरु, जीह देहरी द्वार।
- तुलसी भीतर बाहेरहुँ, जो चाहसि उजियार॥”
- रामचरितमानस की एक और चौपाई:
- “मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सो दसरथ अजर बिहारी।
- राम सियासु रघुकुल भूषण, सुखदायक फल चारि॥”
चौपाई की विशेषताएँ:
- संगठित लय: चौपाई की चार पंक्तियों में लय और संतुलन बना रहता है, जिससे इसका पाठन संगीतात्मक हो जाता है।
- विशेष प्रयुक्ति: चौपाई छंद का उपयोग प्रायः धार्मिक ग्रंथों, भजनों, और महाकाव्यों में होता है। रामचरितमानस और हनुमान चालीसा में चौपाई का भरपूर उपयोग हुआ है।
- सरलता और गहनता: चौपाई में भावों को सरलता से प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन इसका अर्थ गहरा और विचारोत्तेजक होता है।
5. छंद कैसे पहचाने?
छंद को पहचानना एक कला है, जिसमें कविता की वर्ण, मात्रा, यति (विराम), और लय का निरीक्षण किया जाता है। हर छंद की एक विशेष संरचना होती है, जो उसे अन्य छंदों से अलग करती है।जिनमे से कुछ छंदों का वर्णन ऊपर किया गया है।अगर आप जानना चाहते हैं कि किसी कविता या काव्य रचना में कौन सा छंद प्रयोग किया गया है, तो निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:
छंद पहचानने के महत्वपूर्ण बिंदु:
- वर्ण और मात्रा गिनना:
- छंद पहचानने का सबसे पहला कदम है पंक्तियों में वर्णों या मात्राओं की संख्या गिनना।
- कुछ छंद वर्ण आधारित होते हैं, जहाँ पंक्ति में वर्णों की गिनती एक जैसी होती है (जैसे चौपाई में प्रत्येक पंक्ति में 16 वर्ण)।
- अन्य छंद मात्राओं पर आधारित होते हैं, जैसे दोहा में 13-11 मात्राओं का नियम होता है।
- यति (विराम) का स्थान देखना:
- प्रत्येक छंद में यति (विराम) का एक निश्चित स्थान होता है। जैसे दोहा में यति 13वीं मात्रा पर होती है।
- यति से छंद में प्रवाह बनता है और इससे आप छंद की पहचान आसानी से कर सकते हैं।
- गति और लय का निरीक्षण:
- छंद की गति और लय भी उसकी पहचान के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह देखना होता है कि कविता में लय किस प्रकार बह रही है।
- उदाहरण के लिए, चौपाई की लय सरल और मधुर होती है, जबकि रोला में 11-13 मात्राओं की गति रहती है।
- तुकांत (राइमिंग) देखना:
- कुछ छंदों में अंत में तुकांत (राइम) होता है, जैसे दोहा, चौपाई, आदि में।
- तुकांत से छंद का प्रकार और अधिक स्पष्ट हो जाता है। जैसे:
- दोहा: 13-11 मात्राएँ और अंत में राइम।
- चौपाई: 16 वर्ण और अंत में राइम नहीं जरूरी।
6. निष्कर्ष
छंद हिंदी साहित्य की एक अमूल्य धरोहर हैं, जिनके माध्यम से कविता की लय और सुंदरता का अनुभव किया जाता है। अगर आप एक अच्छे कवि बनना चाहते हैं या काव्य की गहराई को समझना चाहते हैं, तो छंद की जानकारी और इसके प्रकारों का अभ्यास आवश्यक है। इस लेख के माध्यम से हमने छंद के प्रमुख अंगों, प्रकारों, और उदाहरणों के साथ उसकी पहचान के तरीके पर चर्चा की। उम्मीद है, यह जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी
FAQs
1.छंद(chhand) का शाब्दिक अर्थ क्या है?
छंद का शाब्दिक अर्थ है “लयबद्ध रचना” या “तालबद्ध कविता”। यह शब्द संस्कृत के “छन्दस्” (छंदस्) से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है “आनंदित करना” या “प्रसन्नता देना”। छंद में शब्दों और ध्वनियों का ऐसा संयोजन होता है, जिससे कविता या पद्य में लय और ताल का प्रवाह बना रहता है। यह कविता के भीतर एक विशिष्ट संरचना और नियमबद्धता को भी दर्शाता है, जिसमें वर्ण, मात्रा, यति, और गति का विशेष ध्यान रखा जाता है।
2.गति और लय में क्या अंतर है?
गति कविता या छंद के शब्दों के पढ़ने की स्पीड (तेज़ या धीमी) को दर्शाती है, जबकि लय कविता के शब्दों और ध्वनियों की संगीतात्मक ताल और प्रवाह को दर्शाती है।
- गति: स्पीड (तेज़ या धीमी)
- लय: ताल और संगीतात्मक प्रवाह